Sunday, August 31, 2008

बाढ़ जैसे राष्ट्रिय आपदा में फंसा इंसान सिर्फ़ बिहारी नहीं

बाढ़ जैसे राष्ट्रिय आपदा में फंसा इंसान सिर्फ़ बिहारी नहीं है. वह बेबस और बेसहारा इस घड़ी दिख भले रहा हो, पर वह किसी सज़ा का हकदार नही. उसकी मदद की गुहार देश के सभी लोगो से है, चाहे वो किसी भी धर्म, जात और कुनबे के क्यो न हो. वह इस प्राकृतिक आपदा से बच निकलने की याचना कर रहा है, क्योंकि कोसी नदी की विनाशलीला दिन-ब-दिन और भयावह और विकराल होती जा रही है, अभी तक के एक अनुमान के मुताबिक ६० से अधिक लोग मारे जा चुके है, तो कितने लोग लापता हैं, इसका कोई हिसाब नही दिख रहा है. ९०० गाँव पानी मे लबालब डूबें हैं, माल-मवेशी का कोई माई-बाप नही. लोग रामभरोसे अपनी जान ले सुरक्षित स्थान पहुचने की फिराक मे हैं. इस विपदा की घड़ी मे
उत्तर बिहार का वो पूरा इलाक़ा जो मधेपुरा, सुपौल, अररिया और पूर्णिया जिलों के अंतर्गत आता है, puri तरह जलमग्न है. आम-आदमी, मवेशी और अन्य जानवर उपयुक्त ठिकाने की तलाश मे भटक रहे हैं, इंसानी रूह भूख-प्यास से बेहाल अनाज के दानों खातिर इधर-उधर दौड़ लगा rahi हैं, स्कूलों मे खचाखच भीड़ है,नानकीस्म की बीमारियो मे बढ़ोतरी हो चली है सो अलग. बहरहाल इस प्राकृतिक प्रकोप से उबरने हेतु पूरे देश से याचना, विनती और प्रार्थना करते हुए, उन्हे लग रहा है जैसे उनकी उम्मीद और आस को बार-बार आजमाया जा रहा है. राजनीतिक बयानबाज़ी और एक-दूसरे par इल्ज़ाम मढ़ने की नौटंकी द्वारा उनके मदद के नाम पर बाढ़ की राजनित की जा रही है. वो भी वैसे समय मे जब उनकी जिंदगी जीवन एवं मौत्त के दोराहे पर खड़ी है. दिन तो गुजर जाता है किसी तरह, रात बमुश्किल से काटनी पड़ती है, ख़ौफ़ और दहशत के बीच. सेना की देखरेख मे चल रहा राहत-कार्य लाखों लोगो का जीवन उबारने मे अक्षम है. उपर से लगातार बारिश होने से राहत-कार्य मे गंभीर संकट पैदा हो गयी है, गिने-चुने ८०-९० नावों की सुविधा अपर्याप्त है, कुछ अपराधी और दबंग किस्म के लोग नाव सवार लोगो से रास्ते में पैसे भी वसूल रहे है. यह समूचा प्रकरण बिहार में २०० साल बाद आये भीषण बाढ़ का हाल बयाँ कर रहे हैं, ये तस्वीरे धुंधली नही आज और अभी की है, मीडिया दूत बाढ़ पर बढ़िया कवरेज कर रहे हैं या फिर समुचित रिपोर्ट पेश कर रहे हैं, वो बात जुदा, पर बाढ़ प्रभावित लोगो का संकट सिर्फ़ बिहारियो का नही अपितु पुरे राष्ट्र का आपदा-विपदा है, समूचे मुल्क के लिए परीक्षा की घड़ी है, यह फुरसत से आराम करने का वक्त नही, हमें साहसी कदम बढ़ा इस जल-प्रलय से जूझ रहे लोगो की मदद खातिर हाथ बढ़ाने की ज़रूरत है, प्रधानमंत्री ने १००० करोड़ रुपये का पैकेज और मुफ्त अनाज देने का वादा कर, जो सहयोग किया वह नाकाफी है। अभी वहाँ के लोगों को इंसानी मदद की दरकार है। जो लोग कल तक अपने घर-आँगन में खुश थे, जिनके आँगन में धुप-छाँव ka लुकाछिपी खेल होता था, जिन घरों के मुंडेर पर कावुआ टर्राते थे, आज वहां पानी ने पुरे जीवन को बेरंग कर दिया है, उनकी जिंदिगी आज जिस तकलीफदेह मुहाने पर है, उसके जिमेदार जन लोकतंत्र के पहरुए और बहरूपिये हैं, जिस राज्य-प्रान्त के लिए कोसी घोषित शोक का पर्याय है, उस नदी से बचाव के लिए न तो ठीक ढंग से बाँध और तटबंध बने है और न अपना घर-बार छोड़ भागने को मजबूर लोगों के विस्थापन का ही बंदोबस्त किया गया है, पूर्व में सत्ता का सुख भोग चुके लालू दल आज नीतिश सरकार पर इस विनाशकारी बाढ़ का ठीकरा फोड़ रहे है, जबकि १९९३ में इसी बाढ़ के विषय पर हुए बहस में कोसी के बाढ़ से निबटने खातिर swym लालू यादव ने ऊँचे और लंबे तटबंधो के निर्माण का वकालत किया था।

Tuesday, August 26, 2008

अभी वक्त है.....

वक्त रफ्तार से बदल रहा है अपना ठौर-ठिकाना। जिन्दगी मगजमारी में काट रही है अपना समय। अकेलेपन से निबटने खातिर भीड़ में समा गये हैं। अफसोस वहां भी नही चैन-व्-रैन। कितना तन्हा हैं अपनों के बीच। सबको अपनी पड़ी है। दूसरों के लिए हमारे पास न तो समय है और न उनकी हाल-चाल ले सकने भर की फुरसत। यंगस्टर पर दबाव है करिअर का। माता-पिता को अपनी अवस्था की मजबूरी ने तोड़ डाला है। बहन सयानी है पडोसिओं की नजर में चढ़ी हुयी। कॉलेज के सोहदे उसे घूरते है इस कदर की वह कह भी नहीं पाती अपनी बात ठीक से सिवा सुबकने के जार-जार। मेरे घर की यह हाल है, तुम्हारा घर सलामत हो तो ख़बर करना.....,