Tuesday, August 26, 2008
अभी वक्त है.....
वक्त रफ्तार से बदल रहा है अपना ठौर-ठिकाना। जिन्दगी मगजमारी में काट रही है अपना समय। अकेलेपन से निबटने खातिर भीड़ में समा गये हैं। अफसोस वहां भी नही चैन-व्-रैन। कितना तन्हा हैं अपनों के बीच। सबको अपनी पड़ी है। दूसरों के लिए हमारे पास न तो समय है और न उनकी हाल-चाल ले सकने भर की फुरसत। यंगस्टर पर दबाव है करिअर का। माता-पिता को अपनी अवस्था की मजबूरी ने तोड़ डाला है। बहन सयानी है पडोसिओं की नजर में चढ़ी हुयी। कॉलेज के सोहदे उसे घूरते है इस कदर की वह कह भी नहीं पाती अपनी बात ठीक से सिवा सुबकने के जार-जार। मेरे घर की यह हाल है, तुम्हारा घर सलामत हो तो ख़बर करना.....,
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